भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री दीप्ति रावत के नेतृत्व में भारत का विभाजन और प्रभाव विषय पर संवाद कार्यक्रम का आयोजन
अब किसी भी प्रकार का बंटवारा स्वीकार्य नहीं होगा- महेंद्र भट्ट
इस विभाजन ने बहुत सारे सवाल भी खड़े किये हैं, कौन लोग इसके शिकार हुए, क्या इसको रोका जा सकता था, कौन लोग हैं जो इसको रोक सकते थे, किसकी मांग पर विभाजन हुआ? जब मुस्लिम लीग के द्वारा विभाजन की मांग उठी और मुस्लिम राष्ट्र की मांग उठी, उसके वर्तमान में क्या क्या प्रभाव है? विभाजन ना हुआ होता तो हम आज आर्थिक रूप से और भी बड़ी शक्ति होते।भारत के विभाजन के इतिहास और प्रभावों पर प्रकाश डालने के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष भाजपा महेंद्र भट्ट ने सीआईएमएस के बच्चों को भारतवर्ष के स्वर्णिम अतीत के विषय में जानकारी प्रदान की और यह बताया की एकता की कमी भारत का विभाजन कर ले गई। उन्होंने कहा की अब किसी भी प्रकार का विभाजन स्वीकार्य नहीं होगा इसलिए हम सबको संगठित रहना है। आज जब हम 78 वें स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं, तो उससे पूर्व हमे ये भी सोचना चाहिये कि ये स्वतंत्रता हमे खैरात में नहीं मिली है और बड़े जद्दोजहद और मेहनत से, लाखों बलिदानों के बाद मिली है। इसका हमे हमेशा स्वागत करना चाहिए और सीमा पर तैनात जवानों का हमेशा कृतज्ञ रहना चाहिए।
राज्यमंत्री विश्वास डावर ने विभाजन के दौर के चित्रों का जीवंत वर्णन बच्चों के मध्य किया। ने बताया की उनका परिवार पूर्वी पाकिस्तान से आया था और कई दशकों से वो उत्तराखण्ड के निवासी हैं। उनके पूर्वजों ने विभाजन की त्रासदी को भी सहा। लाखों लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई और महिलाओं के साथ अत्याचार और बलात्कार की घटनाएं हुई, और हमारे किसानों को भी अपनी जमीन और खेती बाड़ी छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया गया।
हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति एम.एल. भट्ट ने बताया की युवा पीढ़ी को याद रखना चाहिये की कितने कष्टों को झेलने के बाद हमे आजादी मिली है और स्वतंत्रता का महत्व समझने के साथ, अपने करियर और भविष्य के साथ साथ राष्ट्र हित में अपना कुछ ना कुछ योगदान देना चाहिये। इतिहासकार प्रोफेसर सुनील वर्मा ने विस्तार से विभाजन के कारणों और परिणामों पर चर्चा की।
हमारे पाकिस्तान के साथ अब तक चार बार युद्ध हो चुके हैं, 1947-48, 1965, 1971 और 1999 कारगिल लड़ाई। इन लड़ाइयों में लाखों जनहानि भी हुई और अन्य बहुत सारे आर्थिक और सामाजिक नुकसान भी हुए।
भीमराव अंबेडकर भी विभाजन के बाद पूर्ण जनसंख्या विनिमय (अदला-बदली) के समर्थन में थे। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ में यह स्पष्ट रूप से बताया है कि, वे भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण जनसंख्या विनिमय के समर्थन में थे। वो चाहते थे कि पाकिस्तान के सभी हिन्दू और अन्य धर्मों के लोग भारत आयें और भारत के सभी मुसलमान पाकिस्तान में चले जायें, असल में इसके लिये तो उन्होंने एक आधारभूत रूपरेखा भी तैयार की थी कि कैसे पूर्ण जनसंख्या विनियम से उत्पन्न होने वाले मुद्दों से निपटा जाये।