धूमधाम से मनाया गया जौनपुर का ऐतिहासिक राज मौण मेला
धूमधाम से मनाया गया जौनपुर का ऐतिहासिक राज मौण मेला
नैनबाग- उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत में जौनपुर जौनसार और रंवाई का विशेष महत्व है। जौनपुर, जौनसार और रंवाई अपनी अनोखी सांस्कृतिक विरासत के लिए भी जाना जाता है, जिसमें मछली मारने का मौण मेला प्रमुख है जो पूरे देश में अन्यत्र कहीं नहीं होता है। नैनबाग के अगलाड़ नदी में इस मेले का आयोजन किया जाता है। यह यमुना की सहायक नदी भी है। कहा जाता है कि जब यहां राजशाही थी। ऐतिहासिक मौण मेले की शुरुआत 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने की थी। तब से जौनपुर में निरंतर इस मेले का आयोजन किया जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें टिहरी नरेश स्वयं अपने लाव लश्कर एवं रानियों के साथ मौजूद रहते थे। मेले में मछलियां पकड़ने वालों के हाथों में पारंपरिक उपकरण होते हैं, जिसमें कंडियाला, फटियाड़ा, जाल, खाडी, मछोनी आदि कहते हैं।
मछलियों को मारने के लिए प्राकृतिक जड़ी बूटी का प्रयोग किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में टिमरू कहते हैं। इस पौधे की छाल का पाउडर बनाया जाता है, जिसे नदी में डाला जाता है जिससे मछलियां बेहोश हो जाती है। लोग मछलियों को नदी में जाकर पकड़ते हैं। लोग पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते गाते उस स्थान पर जाते हैं, जहां से मौण डाला जाता है। उस स्थान को मौण कोट कहते हैं। पांतिदार पारंपरिक तरीके से पहले टिमरू के पाउडर को डालते हैं। जिसके बाद हजारों की संख्या में लोग मछलियों को पकड़ने नदी में कूद पड़ते हैं। करीब पांच किलोमीटर क्षेत्र में मछली पकड़ी जाती है।